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लड़की का आत्मविश्वास -हमारा समाज


 

हमारे समाज में यह माना जाता है ,की लड़की का असली घर उसके पति का घर होता है | अधिकतर लड़कियां ससुराल को अपना घर समझ कर रहती हैं और अपने परिवार, भाई बहन,और प्यार जो उन्हें बचपन से मिला है , सबको छोड़कर अपने ससुराल के लिए समर्पित हो जाती हैं | लेकिन क्या उन्हें ससुराल में वो प्यार मिलता है ? वो इज्ज़त मिलती है ,जिसकी वो हक़दार हैं ? आज के इस युग में अभी भी कई शहरों में लगभग ७०% लड़कियों को वो प्यार ,वो सम्मान नहीं मिल पा  रहा है जिसकी वो हकदार हैं | माननीय समाज , कई ऐसी लड़कियां हैं जो शादी के बाद अलग अलग परेशानियों का सामना कर रही हैं ,तो क्या जीवन भर उन्हें इस रिश्ते को बोझ की तरह निभाना चाहिए ,जिसमे न तो प्यार है और न ही सम्मान ? क्या उन्हें वापस अपने माँ बाप के साथ सर उठा कर जीने का हक है ? या क्या वह अपनी एक नयी ज़िन्दगी शुरू कर सकती हैं ? जब एक लड़की जन्म लेती है ,तभी से उसे सिखाया जाता है की बड़े होकर तुम्हे अपने घर जाना है "पति का घर " और सबका ध्यान रखना है ,वही तुम्हारा घर है ,माँ बाप हमेशा अपनी लड़की को यही कहकर बड़ा करते हैं की हम तो सिर्फ जन्म देने वाले हैं पर तुम्हे रहना अपने ससुराल में ही है | एक लड़की जिसे इन विचारों के साथ बड़ा किया जाता है ,अच्छी परवरिश दी जाती है ,आत्मसम्मान की सुरक्षा करना सिखाया जाता है और "पति परमेश्वर है "  इस सोच के साथ एक सपना दिखाया जाता है ..... तुम्हारा पति तुम्हे प्यार देगा ,खुशियाँ देगा ,तुम्हे समझेगा ....................सपनों के साथ लड़की ससुराल में प्रवेश करती है और एक एक करके हर सपना टूटते हुए नज़र आता है ,आत्मसम्मान को ठेस पहुचाई जाती है ,प्यार का कहीं नाम नही  होता , इस स्थिति में  एक लड़की को क्या करना चाहिए ? क्या वो अपनी बात रख सकती है ? क्या वो अकेले जीवन बिताने का फैसला ले सकती है ? अगर हाँ ...तो जब भी एक लड़की यह निर्णय लेने का सोचती है तभी उसके मन में समाज का डर पैदा हो जाता है और ज़िन्दगी भर उस दुःख और तकलीफ को सहने के लिए तैयार हो जाती है लेकिन अगर आप "समाज" उन लड़कियों  का हाथ थाम लें और एक बार उनके माता पिता से बात कर लें की आपकी लड़की हमारी लड़की है ,अगर कोई दिक्कत हो तो बोलिए ...कोई फर्क  नहीं पड़ता की लड़की ससुराल में है या मायके में ,फर्क पड़ता है की वो खुश है या नहीं | अगर एक लड़की अपनी शादी शुदा ज़िन्दगी में खुश नहीं है तो उसे पूरा अधिकार है की वो अपने पति से तलाक़ ले ले और अपनी नयी ज़िन्दगी शुरू कर सके सिर्फ समाज का साथ और प्यार भरी नज़रें चाहिए | क्यूंकि हर इन्सान को अपने जीवन में खुश रहने की आज़ादी है बल्कि सबसे पहला काम मनुष्य का अपने आप को खुश रखना ही है ,जब अपने आप को खुश रखेगा तभी तो परिवार को भी खुशियाँ बाँट सकेगा |अब समय आ गया है की एक सशक्त समाज हर लड़की को अपनी बेटी समझकर उसके निर्णय में उसका साथ दे ताकि ससुराल से जब पलटकर देखे तो पूरा समाज उसके साथ खड़ा दिखाई दे ,और लड़की को यह आश्वासन दे सके की तुम्हारे लिए हमारे दरवाज़े हमेशा खुले हैं .......तुम्हारा प्रथम और सर्वत्र घर समाज है | आप ही लड़की की सबसे बड़ी ताकत हैं और हिम्मत भी |

कई बार यह स्थिति कुछ लड़कों  के साथ भी बनती है और  उन्हें भी पूरा अधिकार है अपना नया जीवन शुरू करने का पूरे सम्मान के साथ |

"आदरणीय पाठकों आप अपने विचार व्यक्त करने के लिए आमंत्रित हैं |"अगर सहमत हों तो शेयर ज़रूर करें |


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